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खंजर

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यह दुनिया इतनी
बंजर क्यों है |

हर किसी के हाथ में छुपा
एक खंजर क्यों है |

जहा भी जाऊ मै, पानी की तलाश में
मिलता मुझे एक, खण्डर क्यों है |

मंजिल की ओर, चलता हूँ मै जब भी
तो राहो में मिलते, इतने बवण्डर क्यों है |

ऐ खुदा, तू है भी क्या इस जहा में
और है तो फिर, इतना कठोर क्यों है |