मौत
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ये दिल खुद को क्यों धोका देता है
न जाने ये इसमें क्या मज़ा पाता है
ना खुद को ना अपनों को ये समझता है
खुद ही के खयालो में ये उलझता है
पर जब भी ये धोका खाता है
ये अपने आप ही उभरता है
और
मंज़िल की और निकल पड़ता है
ये जान कर भी ये खुश रहता है
की अगले मोड़ पर भी तो धोका ही पाना है