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काच

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काश ये दिल काच होता

कतरा कतरा समेट कर
मैं उसे वापिस बना पाता

दिल चूर चूर होने पर
मुझे ज़रा भी गम न होता

दर्द-ए-दिल भुलाकर
मैं उसे ही वापिस दे देता