और सुनाओ
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और सुनाओ
हर कोई कहता है |
पर सुनने के वास्ते
वक़्त कौन देता है |
मिलते है
हर शख्स कहता है |
अगली दफा पक्का
ये कहके भूल जाता है |
किसीका कुसूर नहीं
झूठी तसल्ली देना तो
इंसानी फितरत की
एक पुरानी दास्ता है |
और यु ही करते रहना
अपनी इंसानियत की
पहचान देने का एक
सस्ता और आसान रास्ता है |